Marriage Rights For Women : विवाह का हमारे जीवन में उच्च स्थान है, जब एक महिला और पुरुष इस बंधन में बंधते है तो उनके साथ दो परिवार भी जुड़ते है। हिन्दू धर्म में विवाह को उच्च माना गया है। शादी की रश्में दोनों परिवारों के बीच सभी रिश्तेदारों के समक्ष ईश्वर को साक्षी मानकर ली जाती है। इसके बाद विवाहित जोड़ा जीवनभर एक दूसरे का साथ निभाता है। इस पवित्र रिश्ते को निभाने में दोनों कई सारे त्याग करते हैं। विवाह एक तरह की निस्वार्थ साझेदारी है, जिसमें दिखते तो दो लोग है पर असल में वे एक बनकर समाज की जिम्मेदारीयों में अपनी भागीदारी निभाते हैं।
इस विशेष साझेदारी में कई बार समस्याएं भी आ जाती है, ऐसे में इंडियन लीगल राइट्स के अधिकारों की जानकारी हर महिला को होना चाहिए। एक महिला जो विवाह के बाद नए घर में जीवन शुरु करती है, उसे यदि वैवाहिक बंधन में किसी तरह की समस्या हो तो उसके लिए मुश्किलें बढ़ जाती है। क्या करे? क्या ना करें इस उलझन में कई बार बड़ी घटनाएं भी अंजाम ले लेती है। ऐसे में महिलाओं को भारतीय कानून के अंतर्गत उन्हें प्राप्त अधिकारों की जानकारी जरुर होना चाहिए-
इंडियन लीगल राइट्स में वैवाहिक महिला को प्राप्त अधिकार ..
1- पति के घर में रहने का अधिकार
विवाह के बाद एक पत्नी को कानूनी अधिकार (Marriage Rights) प्राप्त है की वह अपने पति के घर में रहेगी। चाहे परिस्थिति किसी भी तरह की हो, चाहे उनके पति की मृत्यु ही क्यों ना हो गई हो। यदि तलाक हो चुका है तब भी पत्नी को अधिकार है कि वह पति के घर में रह सकती है। जब तक कि उसे रहने के लिए दूसरी उचित जगह नहीं मिल जाती। तलाक के बाद यदि महिला उसी घर में रहना चाहे, तो ये भी यह उसके लीगल हक में है।
2- स्त्री धन का अधिकार (Marriage Rights)
विवाह में महिला को जो भी धन,जेवर और उपहार प्राप्त होते है उस पर वैवाहिक स्त्री का ही अधिकार होता है। महिला उसे स्वंय की इच्छा के अनुसार इस्तेमाल कर सकती है। Hindu Marriage एक्ट (Marriage Rights) के अंतर्गत एक महिला स्त्रीधन को अधिकारपूर्वक और मालिकाना हक के साथ मांग सकती है। अगर उसके इस अधिकार का हनन होता है, तो ऐसी परिस्थिति में वह The protection of Women Against Domestic Violence Act में सेक्शन 19 A, के अंतर्गत शिकायत दर्ज करा सकती है।
3- विवाह के बाद गर्भधारण का अधिकार
वैवाहिक कानून (Marriage Rights)के अनुसार महिला के पास अधिकार है की वह अपनी इच्छा के अनुसार गर्भ रख सकती है या उसे हटा सकती है। इसके लिए उसे अपने ससुराल या अपने पति की सहमति की जरूरत नहीं है। The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971, के अंतर्गत एक महिला अपनी प्रेगनेंसी को किसी भी समय खत्म कर सकती है, इसके लिए प्रेगनेंसी का 24 सप्ताह से कम का होना जरूरी है। कुछ स्पेशल केस इसमें एक महिला अपने प्रेगनेंसी को 24 सप्ताह के बाद भी अबॉर्ड करा सकती है, इसके लिए इंडियन कोर्ट ने उसे अधिकार दिया है।
4- तलाक का अधिकार
वैवाहिक महिला के पास अधिकार (Marriage Rights) है की वह विशेष परिस्थिति में पति की इच्छा के विरुद्ध भी तलाक ले सकती है। यदि महिला के साथ पति ने बेवफाई की हो, या उस महिला के साथ निर्दयता या शारीरिक और मानसिक अत्याचार आदि हो रहा हो। इन स्थिती में हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत एक महिला अपने पति की सहमति के बिना भी तलाक लेने का अधिकार रखती है, साथ ही महिला अपने पति से मेंटेनेंस चार्ज की मांग कर सकती है।
5- बच्चे की कस्टडी का अधिकार
महिलाओं के पास ये अधिकार (Marriage Rights) है की वह तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी ले सके। विशेष रुप से यदि बच्चा 5 साल से छोटा हो। इसके साथ ही अगर वह अपना ससुराल छोड़ कर जा रही है, ऐसी परिस्थिति में भी वह बिना किसी कानूनी ऑर्डर के अपने बच्चे को अपने साथ ले जा सकती है।
6- घरेलू हिंसा के खिलाफ रिपोर्ट करने का अधिकार
विवाह के बाद महिला के साथ हिंसा की देश में हर रोज शिकायत दर्ज होती हैं। अधिकांश मामलों में महिला स्वंय शिकायत दर्ज नहीं करती। मामला बढ़ने पर खुद सामने आता है, तभी इन बातों का पता चलता है। पर इस अधिकार (Marriage Rights) की हर महिला को जानकारी होना चाहिए। Domestic violence Act के अंतर्गत एक महिला को यह अधिकार प्राप्त है, कि अगर उसके साथ उसका पति या उसके ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सैक्शुअल या आर्थिक रूप से अत्याचार या शोषण करते हैं, तो वह उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती है।
लोकतंत्र पर सभी का हक है, तो ऐसे में एक महिला को सदैव अपने अधिकारों की जानकारी होना चाहिए। अपने अधिकारों (Marriage Rights) के लिए, अपने सम्मान के लिए लड़ना आवश्यक है और यह तभी संभव है जब ज्ञान प्राप्त हो। तो अपने इन अधिकारों को हमेशा याद रखें। स्त्री यदि मकान को घर बनाने, परिवार को जोड़ने की शक्ति रखती है तो उसे स्वंय के अधिकार के लिए भी खड़े होना चाहिए।